
शमा परवाने को जलाना सिखाती है, शाम सूरज को ढलना सिखाती है,मुसाफिर को ठोकरों से होती तो हैं तकलीफ़ें, लेकिन ठोकरें ही एक मुसाफिर को चलना सिखाती हैं !
शमा परवाने को जलाना सिखाती है, शाम सूरज को ढलना सिखाती है,मुसाफिर को ठोकरों से होती तो हैं तकलीफ़ें, लेकिन ठोकरें ही एक मुसाफिर को चलना सिखाती हैं !